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कई लोग कहते हैं कि इंसान तो मांस खाने के लिए ही बना है क्योंकि उनके पास कैनाइन दांत होते हैं। जबकि सच ये है कि दुनिया की एक बड़ी आबादी शाकाहार पर ही निर्भर है। और यह भी सच है कि जो लोग मांस नहीं खाते वे शारीरिक रूप से ज्यादा फुर्तीले होते हैं। दरअसल तथ्यों को जाने बिना लोग शाकाहार के मिथकों पर भरोसा करते रहते हैं. तो क्या हैं ये मिथक?
पहला मिथक है कि शाकाहारियों को प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलता जबकि सच ये है कि सब्जियों में 23%, बीन्स में 28%, गेहूं, बाजरा जैसे ग्रेन्स में 13%, और फलों में 5.5% प्रोटीन होता है। मां के दूध में 6% प्रोटीन मौजूद होता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि एक प्रौढ़ के लिए 2.5 से 10% प्रोटीन की ज़रूरत होती है। कहा जाता है कि मांस का प्रोटीन फल-सब्जी के प्रोटीन से बेहतर होता है और फल-सब्जियों के प्रोटीन को किसी न किसी के साथ मिलाना होता है तब उसका असर हो पाता है। यह मिथक 1971 में एक लेखिका ने अपनी किताब में लिखा था वो भी बिना किसी आधार के। 30 साल बाद लेखिका ने खुद कबूल किया कि उसने गलती की थी। दरअसल प्रोटीन एक जैसे ही होते हैं।अमेरिका के चिकित्सक डॉक्टर जॉन मेकडॉगल इस मिथक को खारिज करते हैं कि वनस्पति का तेल बेहतर होता है। डॉक्टर कहते हैं कि चाहे जैतून का तेल डालें या मक्खन ही क्यों न डाल दे फैट का असर एक समान होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सैचुरेटेड और अनसैचुरेटेड फैट कैंसर सेल बनाता है। शोध में हमेशा यही सामने आया है कि जितना ज्यादा फैट खाया जाएगा उतना ज्यादा कैंसर का खतरा बढ़ेगा। मक्के, जैतून या सूर्यमुखी के तेल में ज्यादा अनसैचुरेटेड फैट होता है और यही कैंसर का खतरा ज्यादा बढ़ाते हैं।

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